बढ़ती आत्महत्याएं : सरकारें खामोश क्यों ?
देश-दुनिया में 77 प्रतिशत आत्महत्याएं निम्न व मध्यम आय वाले देशों, राज्यों, घरों एवं परिवारों में घटित होती हैं. दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से हो रही है. आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के संख्या के आधार पर विश्व में भारत का स्थान 43वां है.
देश-दुनिया में 77 प्रतिशत आत्महत्याएं निम्न व मध्यम आय वाले देशों, राज्यों, घरों एवं परिवारों में घटित होती हैं. दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से हो रही है. आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के संख्या के आधार पर विश्व में भारत का स्थान 43वां है. खबरों के मुताबिक विश्व में होने वाले कुल आत्महत्याओं के मामले में 21 प्रतिशत मामले भारत में होते हैं. भारत में हर 4 मिनट में एक आत्महत्या होने लगी है, जो कि बेहद गंभीर मामला है.
डॉ. लखन चौधरी
पिछले कुछ महिनों से देशभर में आत्महत्याओं की घटनाएं बहुत तेजी के साथ बढ़ीं है. कई जानकारों का मानना है कि इसके पीछे कोरोना कालखण्ड की त्रासदियों के बीच एवं कोविड-19 के बाद उपजी तरह-तरह की चिंताएं, कठिनाईयां, समस्याएं, विपत्तियां जिम्मेवार हैं. कोरोना की वजह सेे आम जनमानस के जीवन में चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं. इन दिनों माहौल एवं वातावरण कुछ अधिक ही ज़हरीला एवं विषाक्त होता जा रहा है. एकाकी जीवन की चिंताएं व्यक्तियों को अवसाद में धकेल रहा है, नतीजा खुदकुशी है.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में देश के अलग-अलग शिक्षा प्राप्त करने वाले यानि अलग-अलग शैक्षणिक पृष्ठभूमि के लोगों में खुदकुशी की अलग-अलग प्रवृत्ति देखी गई है. देश में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त लोगों में 16 फीसदी लोगों ने 2021 में आत्महत्या की है. मीडिल यानि माध्यमिक तक की शि. हायर सेकेण्डरी तक की शिक्षा प्राप्त वालों में 16 फीसदी ने आत्महत्या की है. स्नातक स्तर की डिग्रीधारी 5 फीसदी ने जबकि एमबीए जैसे उच्च डिग्रीधारियों में 1 फीसदी ने 2021 में आत्महत्या की है. 2021 में आत्महत्या करने वाले लोगों में 8 फीसदी अन्य के साथ आत्महत्या करने वालों में 11 फीसदी अशिक्षितों की श्रेणी के पाए गये हैं.
आंकड़ें बताते है कि देश-दुनिया में 77 प्रतिशत आत्महत्याएं निम्न व मध्यम आय वाले देशों, राज्यों, घरों एवं परिवारों में घटित होती हैं. दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से हो रही है. आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के संख्या के आधार पर विश्व में भारत का स्थान 43वां है. खबरों के मुताबिक विश्व में होने वाले कुल आत्महत्याओं के मामले में 21 प्रतिशत मामले भारत में होते हैं. भारत में हर 4 मिनट में एक आत्महत्या होने लगी है, जो कि बेहद गंभीर मामला है.
एनसीआरबी यानि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2021 की रिपोर्ट के अनुसार देश में आत्महत्या के आंकड़ें लगातार बढ़ते जा रहे हैं. अलग-अलग तरह के व्यवसाय करने वाले कामकाजी लोगों और अलग-अलग तरह के शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों में खुदकुशी की यह प्रवृत्ति अलग-अलग देखी जा रही है.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में देश के 26 फीसदी दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है. 2021 में आत्महत्या की यह प्रवृत्ति गृहणियों में 14 फीसदी रही है. स्वयं का व्यवसाय करने वाले स्वनियोजित या स्वरोजगार पेशेवरों में 12 फीसदी ने आत्महत्या की है. 2021 में आत्महत्या की यह प्रवृत्ति वेतनभोगी पेशेवरों में 10 फीसदी पाई गई है. बेरोजगारों एवं विद्यार्थियों में आत्महत्या की यह प्रवृत्ति 8-8 फीसदी रही है. खेती किसानी से जुड़े 7 फीसदी लोगों ने आत्महत्या की है. सेवानिवृत बुजुर्गों में आत्महत्या की यह प्रवृत्ति नगण्य यानि मात्र 1 फीसदी रही है, जबकि अन्य लागों में खुदकुशी की प्रवृत्ति 14 फीसदी रही है.
तथाकथित आधुनिक समाज की इससे बड़ी विडम्बना, विसंगति, विकृति एवं विरोधाभास और क्या हो सकती है ? इसके बावजूद हमारे स्वार्थी समाज और सरकारों को हमारे बच्चों, युवाओं, नौनिहालों की आत्महत्याएं जैसी खबरें भी परेशान नहीं करती है ? या नहीं कर रही हैं ? यह कोरोना कालखण्ड की ही चिंता, त्रासदी है ? ऐसी भी बात नहीं है, इसके बावजूद हमारी आंखे नहीं खुल नहीं हैं. यह अलग बात है कि कोरोना संक्रमण की लगातार बढ़ती घटनाओं के बीच इस तरह की घटनाएं आम जनमानस के साथ हमारे बच्चों, युवाओं, नौनिहालों को अधिक सता रही हैं. नामी, अनजान, गुमनाम तमाम तरह के इसमें सैंकड़ों नाम हर महिने जुड़ते जा रहे हैं, लेकिन इस तरह की दुखद एवं दुर्भाग्यपूर्णं घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं बल्कि बढ़ती ही जा रहीं हैं.
इन घटनाओं को अंजाम देने में, देने के लिए मीडिया की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती है. सोशल एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया का खेल इस तरह की घटनाओं को हवा देने में बहुत हद तक जिम्मेदार हैं. इसे केवल एक समाचार के तौर पर दिखा कर घटना की इतिश्री कर लेतीं हैं, जबकि इन घटनाओं के मनोवैज्ञानिक पक्षों के साथ विचार करते हुए साहस देने एवं उनका हौसला बढ़ाने की अधिक आवश्यकता है.
दरअसल में हमारी जिंदगी पर हमारे पालक-अभिभावक, परिवार, समाज, सरकार एवं देश की भी संपत्ति है. जीवन में अक्सर निर्णय लेने की क्षमता की कमी के कारण या निर्णय लेने में विलंब के कारण या निर्णय नहीं ले सकने-पाने के कारण या गलत निर्णय के कारण व्यक्ति के जीवन में अवसाद, निराशा, तनाव, कुण्ठा, हताशा जन्म लेती है, और व्यक्ति अपनी योग्यताओं, क्षमताओं का उपयोग नहीं कर पाता है. जीवन उबाऊ एवं बोझिल बन जाता है, अंततः आत्महत्या का विचार मन में घर करता जाता है. इसलिए तमाम बाधाओं, चिंताओं, निराशाओं, नकारात्मकताओं के बावजूद सकारात्मकता, रचनात्मकता एवं सर्जनात्मकता का दामन थामिए. जीवन को सार्थकता प्रदान कीजिए. जीवन को समाप्त करने के बजाय जीवन को जीने का जोखिम लीजिए. याद रहे, इतिहास चुनौतियों से भागने से नहीं अपितु डटकर मुकाबला करने एवे संघर्षों से बनता है.
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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