हसदेव को बचाने सर्व आदिवासी समाज एवं दलित आदिवासी मंच का मौन जुलूस ,राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन
हसदेव अरण्य को बचाने सर्व आदिवासी समाज एवं दलित आदिवासी मंच ने नगर में मौन जुलूस निकाला और एसडीएम कार्यालय पहुंच महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा |
पिथौरा| हसदेव अरण्य को बचाने सर्व आदिवासी समाज एवं दलित आदिवासी मंच ने नगर में मौन जुलूस निकाला और एसडीएम कार्यालय पहुंच महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा | बात दें राज्य सरकार द्वारा परसा कोल खदान खनन की अनुमति दिए जाने के बाद से हसदेव अरण्य के पेड़ काटे जाने शुरू हो गये हैं |
सर्व आदिवासी समाज एवं दलित आदिवासी मंच द्वारा छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य के समृद्ध वन क्षेत्र में पर्यावरण की चिंताओं और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार करके दी गई खनन की अनुमति को निरस्त करने की मांग को लेकर नगर में मौन पोस्टर जुलूस निकालकर एसडीएम कार्यालय पहुंचे और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा|
उक्त सम्बन्ध में समाज जनों ने बताया कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों के भारी विरोध के बाद भी हसदेव अरण्य क्षेत्र के परसा कॉल ब्लॉक के विस्तार के लिए 6 अप्रैल 2022 को आधिकारिक रूप से मंजूरी दे दी| यहां जंगलों की कटाई कर कोयले की खदाने शुरू होंगी|
ये प्रोजेक्ट एशिया के सबसे अमीर आदमी गौतम अड़ानी का है| इसको रोकने के लिए आदिवासियों ने चिपको आंदोलन भी शुरू किया लेकिन, पेडों की कटाई चोरी-छिपे रात में की जा रही है| ज़िसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं, लेकिन विडंबना ये है कि पिछले कई दिनों से इस प्रोजेक्ट के खिलाफ चल रहे आदिवासियों के इस प्रदर्शन को नेशनल मीडिया में जगह तक नहीं मिली।
पिछले एक दशक से पर्यावरण संरक्षण, जंगली जानवरों और सघन वन की दृष्टि से देखते हुए हसदेव अरण्य में कोयला खदानों का लगातार विरोध हो रहा है| पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल इस क्षेत्र के आदिवासी समुदायों के लिए इस जंगल के बिना अपनी ज़िंदगी की कल्पना करना भी मुश्किल है। मौजूदा वक़्त में भारी संख्या में आदिवासी लोग इसका विरोध कर रहे हैं|
जिस दौर में पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से जूझ रही है उस दौर में कॉर्पोरेट के मुनाफे के लिए इतने बड़े जंगली इलाके को तबाह किया जाना किसी भी प्रकार की समझदारी कैसे हो सकती है।
बीते एक दशक से स्थानीय ग्राम सभाओं के संगठन हसदेव बचाओ संघर्ष समिति ने इस अमूल्य जंगल को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए| हर संबंधित विभाग को इससे परिचित कराया लेकिन कोई हल नहीं निकाला गया।
दरअसल ये कोल ब्लॉक्स राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आबंटित हैं जिन्हें MDO के जरिये अडानी ग्रुप को खनन की ठेकेदारी सौंपी गयी है. इसलिए इसे अडानी के हित और मुनाफे से जोड़ कर देखा जा रहा है।
841 हेक्टेयर के हसदेव को खनन से बचाने के लिए बीते साल आदिवासियों ने सरगुजा से रायपुर तक 300 किलोमीटर पदय़ात्रा की। यहां तक दिल्ली जाकर राहुल गांधी से भी मुलाकात की लेकिन इस परियोजना को हरी झंड़ी दिखा दी गई।
हसदेव अरण्य 2010 में इसे ‘नो गो जोन’ घोषित किया गया था ज़िसका मतलब है कि ये इलाका पर्यवरण की दृष्टी से, जंगली जानवरों के लिए, आदिवासी और उनकी संस्कृती और मुख्य नदी हसदेव क इलाका है, जिसके बाद यहां कोयले के खनन पर रोक लगी थी| लेकिन 2012 में फिर खनन होने लगा, तबसे अब तक ये विवाद जारी है।
इससे पहले 2016 में राहुल गांधी ने स्वयं हसदेव अरण्य में जाकर स्थानीय आदिवासी समुदायों से ये वादा किया था कि अगर उनकी सरकार इस प्रदेश में बनती है तो वो इस जंगल को किसी भी कीमत पर उजड़ने नहीं देंगे| ये बात उन्होनें तत्कालीन सरकार का विरोध करते हुए संसद में भी कही थी कि भाजपा सरकार अडानी को एक बेशकीमती जंगल सौंप रही है, ज़िससे इलाके को बहुत बड़ा नुक़सान होगा|
लेकिन सरकार बनने के बाद राहुल गांधी अपना वादा भूल गए और जो काम भाजपा कर रही थी वही काम अब भूपेश सरकार भी कर रही है| ज़िसे देखकर लगता है कि राजनीति में मौका परस्ती सबसे बड़ी तो है ही लेकिन वायदे करके सरकार बनाना और सरकार बनते ही वायदे से मुकर जाना भी एक पैटर्न हो गया है।
इस दौरान सर्व आदिवासी समाज ब्लॉक अध्यक्ष मनराखन ठाकुर, दलित आदिवासी मंच के अध्यक्ष राजीम तांडी, देवेंद्र बघेल, भूषण सिंह सूर्यवंशी, दशरथ बरिहा, तुलसी दीवान, इंदल माझी जगबंधु कौध, विश्राम ठाकुर, नानक ठाकुर, पालेश्वर ठाकुर, बुधराम ठाकुर, सहित समाज जन उपस्थित थे|
deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा